Thursday, November 5, 2009

|| कार्य सिध्दी मंत्र ||

|| कार्य सिध्दी मंत्र ||

मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः|

स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मावरोधकः|

लोहितो लोहिताक्षश्च | समागानां कृपाकरः|

धरात्मजः कुजो भौमो | भूतिदा भूमिनंदनः||२||

अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहाराकः|

दृष्टेः कर्ता पहर्ताच सर्वकामफलप्रद ||३||



Monday, January 26, 2009

जुग सहस्त्र योजन पर भानु .... हनुमान चालीसा


जुग सहस्त्र योजन पर भानु .... हनुमान चालीसा !!!


हमारी पौराणिक कथाऐ कपोल कल्पित गाथा नही है , बल्कि ज्ञान - विज्ञान के गूढ़ तत्वों को कथा की माला में पिरोकर सत्य का उदघाटन कराती है .
इसी सन्दर्भ में हनुमानजी द्वारा जन्म लेते ही सूर्य को निगलने की कथा सतही तौर पर भले ही अविश्वसनीय प्रतीत होती हो , परन्तु गहन रूप से चिंतन मनन करने पर यह अदभुत वैज्ञानिक सत्य को प्रकट कराती है .

गोस्वामी तुलसीदासजी ने हनुमानजी के पराक्रम के साथ साथ पृथ्वी से सूर्य की दुरी भी
बतला दी है .

" ! ! ! जुग सहस्त्र योजन पर भानु ! ! !"
" ! ! ! लील्यो ताहि मधुरा फल जानू ! ! !"
यहाँ पर यह कहा गया है की , युग एक हजार बार बीतने पर जो संख्या आती है , उतने ही योजन की दुरी पृथ्वी से सूर्य की है ।
युग चार है - सतयुग , त्रेता , द्वापर और कलियुग मनुस्मृति के अनुसार चार हजार वर्ष का सतयुग , तीन हजार वर्ष का त्रेता युग , दो हजार वर्ष का द्वापर युग और एक हजार वर्ष का कलियुग का परिमाण है .
इस प्रकार चारों युगो का योग दस हजार वर्ष हुआ तथा इसके दशांश की दो संध्याए - प्रान्त और सायन , अर्थात दो हजार वर्ष चारों युग और इन दो संध्याओ का कुल योग बारह हजार वर्ष हुआ एक योजन आठ मील के बराबर है .
तदनुसार १२,००० वर्ष गुणित एक हजार ( सहस्त्र ) गुणित आठ ( १२,००० गुना १,००० गुना ८ = ९६,०००,००० मील ) ९६,०००,००० मील की दुरी पृथ्वी से सूर्य की है .
पाव चौपाई में यह सत्य गोस्वामीजी ने बड़ी सरलता से हमारे सम्मुख प्रस्तुत कर दिया यह है .
भारत के आध्यात्मिक ज्ञान का एक दृष्टान्त , जिसे गोस्वामीजी ने मात्र आधी चौपाई में प्रकट कर अपनी विलक्षण प्रतिभा का उदाहरण प्रस्तुत किया है गागर में सागर भर दिया है .
महेंद्र लाठी